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गुरुवार, जनवरी 27, 2011

जेहनो-दिल से जब तेरा ख्याल गुजरे



वो हर इक लम्हा तो जैसे साल गुजरे 
जेहनो-दिल से जब तेरा ख्याल गुजरे 

तेरी यादों में जो कभी शाम हुआ करे 
फिर आँखों से रात भर शलाल गुजरे 

आईने में भी अपनी सूरत दिखी नहीं 
मेरे साथ ऐसे भी बहुत कमाल गुजरे 

मैं चराग हूँ पर हार मानूंगा नहीं यूँ ही 
कह दो इस हवा से अपनी चाल गुजरे 

उसके बाद तो किसी पे नज़रें नहीं रुकीं 
वैसे नज़र से कई हूर-ओ-जमाल गुजरे 

हर बार क्यूँ मैं ही उसको मनाने जाऊं 
मैं रहूँ खामोश तो उसको मलाल गुजरे 

दर्द के सफ़र में कब होगी नसीब मंजिल 
''राज़'' के दिल में बस यही सवाल गुजरे 

बुधवार, जनवरी 19, 2011

दरिया जब समंदर में उतर गया होगा


दरिया जब समंदर में उतर गया होगा 
वो अपने वजूद से ही बिखर गया होगा 

ये शब् के पहलू में नमी कैसी आ गयी 
अश्क ले कर कोई ता-सहर गया होगा 

मानूस नहीं ये दिल यहाँ यूँ ही हुआ है 
वादा आने का कोई तो कर गया होगा 

दिले-गुलशन में अब गुंचे नहीं खिलते 
उनकी याद का तूफां गुजर गया होगा 

खामियां बताने में ये ज़माना कम नहीं 
इल्जाम तो माह के भी सर गया होगा 

अपनी आँखों को ही जलाया होगा ''राज़''
चराग खुशियों का बुझ अगर गया होगा

सोमवार, जनवरी 17, 2011

ख्वाब में ही सही आके तो मिला कर


कभी मुझ पर भी तू इतनी दुआ कर 
ख्वाब में ही सही आके तो मिला कर 

महर-ओ-माह की नहीं दरकार मुझे 
मेरे घर में इक चराग बस अता कर 

थक चुकी है ये शब् तीरगी से बहुत
नसीमे-सहर दे खूबसुरत फ़ज़ा कर 

ना ले थाम हाथों में तू हाथ मेरा पर  
साथ कुछ दूर चलने से ना मना कर 

आजार-ए-इश्क का भी मज़ा ले यहाँ 
अरे इक बार ही सही ये भी खता कर 

सुकूँ उसके ही दर पर ही तुझे आएगा 
चल मस्जिद चल इबादत-ए-खुदा कर 

ज़फ़ा करे वो तो हंस के टाल दे "राज़"
कुछ और ना उनसे वफ़ा के सिवा कर 

रविवार, जनवरी 09, 2011

रात भर........


ख्यालों में आपका आना जाना रात भर  
फिर चश्मे--तर का मुस्कुराना रात भर

हर इक आहट पे है आपकी आमद लगे
मेरा दरवाजे तक नज़रें उठाना रात भर 

आपके पैरहन को छूके जब चली ये सबा 
हरसू खुला जैसे कोई मयखाना रात भर 

हवा, शजर, पत्ते, घटाएं, बेकरार थे सब 
इक मैं ही न था यहाँ पे दीवाना रात भर 

के बज़्म-ए-तन्हाई में चली याद आपकी 
बना लफ्ज़-लफ्ज़ पर अफसाना रात भर 

हद-ए-इंतज़ार में ये चराग भी बेसुध था 
जारी रहा उसका भी लडखडाना रात भर 

अभी तो गज़र का यहाँ पहला ही पहर है 
हुआ खुद को यूँ ''राज़''बहलाना रात भर 

शुक्रवार, जनवरी 07, 2011

इक खुबसूरत सी दुआ 'आरज़ू'


इक खुबसूरत सी दुआ 'आरज़ू' 
दिल से निकलती सदा 'आरज़ू' 

जेहन में जब हो मौसमे-सहरा 
होती है रंगीन ये फिजा 'आरज़ू' 

निशाँ ना रहे तीरगी का यहाँ पे  
हो जब सहर खुशनुमा 'आरज़ू' 

फूल खिल जाएँ महकें कलियाँ  
चले जो होके बादे-सबा 'आरज़ू' 

कोई और क्या मिसाल दूँ यहाँ
मैं मोहब्बत तो है वफ़ा 'आरज़ू' 

सुकून हर दर में हो जाए अता 
जहाँ भी मैं लूँ गुनगुना 'आरज़ू' 

हिज्र की तनहा सी इन रातों में 
रौशनी का हो रहे दिया 'आरज़ू' 

कुछ और 'राज़' क्या ख्याल करें 
नाम जुबाँ पे जबसे सजा 'आरज़ू' 

मंगलवार, जनवरी 04, 2011

जिंदगी फिर जिंदगी सी रहा करे


गम में भी जो ख़ुशी सी रहा करे 
जिंदगी फिर जिंदगी सी रहा करे 

यूँ तो रात-दिन तेरी याद साथ रहे 
पर दिल को कुछ कमी सी रहा करे 

जब भी मेरी आँखें बरसा करें यहाँ 
तीरगी में भी रौशनी सी रहा करे 

तेरे बगैर आलम सेहरा सा लगे है 
जाने कैसी ये तिश्नगी सी रहा करे 

ख्याल बन कर जेहन में तो उतरे 
पर मिले तो अजनबी सी रहा करे 

छूके जो तेरा आँचल चले वो कभी 
हवा फिर तो ये संदली सी रहा करे 

साजों पे जो तेरा नाम लिख दूँ मैं 
तो खुबसूरत मौशिकी सी रहा करे 

सोमवार, जनवरी 03, 2011

आज-कल तो वो बड़ी ही शान में रहता है


आज-कल तो वो बड़ी ही शान में रहता है 
क्या बात हुयी है किस गुमान में रहता है 

जो चला है मेरे आँगन में पत्थर बरसाने 
अरे खुद भी तो कांच के मकान में रहता है 

हो शाम तो लौटना उसे भी शज़र पे ही है 
दिन भर जो परिंदा आसमान में रहता है 

खुदा की मुझपे तो कभी इनायत ना हुयी 
कौन जाने के वो किस जहान में रहता है 

एक अरसा हुआ है उसका ख्याल भुलाए 
पर वो चेहरा आज भी ध्यान में रहता है 

इतनी मिठास कहीं और नहीं है मिलती 
जो लहजा अपनी उर्दू ज़बान में रहता है 

इबादत लबों से नहीं दिल से निकलती है 
रोज़ा जब भी माह-ए-रमजान में रहता है 

शज़र जो ख़ामोशी से हवा में झुक गए हों 
उनसे लड़ने का ना दम तूफ़ान में रहता है 

कमसुखन हैं "राज़", पर ये बात जान लो 
वज़न तो उसके हर इक बयान में रहता है