वो मेरा होकर भी मुझसे जुदा रहा
जब भी मिला बस खफा खफा रहा
क्या मौसम आये क्या बादल बरसे
कहाँ ख्याल सर्द आहों के सिवा रहा
वक़्त ने यूँ मिटा तो दी तहरीरें कई
सीने का मगर, हर ज़ख़्म हरा रहा
रात भर शमा अश्कों की जला करी
सहर कब हुई, ना शब् का पता रहा
खौफ तन्हाई का यूँ मेरे घर आ गया
जो उसकी यादों से ही गले लगा रहा
जिंदा तो हम रहे थे, साँसे भी चलीं थीं
पर कब दिल सुकूं में उसके बिना रहा
उठ-उठ कर रातों को रोया किये हम
हश्र यही "राज़" उम्र भर को बपा रहा