दिल के दर्द-ओ-गम का बयान हैं आँखें
कभी ज़मीं तो कभी आसमान हैं आँखें
जाने क्या क्या अफसाने लिखे हैं इनमे
कौन कहता है इबारत आसान हैं आँखें
कुर्बत के लम्हों में खिलते गुलाब के जैसी
हिज्र के मौसम में होती बियाबान हैं आँखें
जब से गया है वो मरासिम तोड़ कर सारे
उसकी याद में रहती बहुत परेशान हैं आँखें
जब तक हैं खामोश तो खामोश ही रहेंगी
जिद पे आ जाएं तो फिर तूफ़ान हैं आँखें