लोकप्रिय पोस्ट

रविवार, अक्तूबर 31, 2010

शाम फिर से मुस्कराने लगी


शाम फिर से मुस्कराने लगी 
उसकी याद जब यूँ आने लगी 

चराग खुद-ब-खुद ही जल उठे 
रौशनी उसे ही गुनगुनाने लगी 

संदली हवा छूके उसके गेसू चली 
सारा आलम घटा महकाने लगी 

रुख से जो उसके आँचल ढलका  
शब् जुगनुओं सी शरमाने लगी 

हंस पड़े थे चमन के फूल सारे 
होठों पे हंसी जो लहराने लगी 

रक्स करता हुआ जर्रा-२ मिला 
वो पाजेब जो छमछमाने लगी