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सोमवार, अक्तूबर 19, 2009

बज्म -ऐ- दिल अब उसके नाम से चलती है


ये मेरी धड़कन बहुत एहतराम से चलती है
बज्म -ऐ- दिल अब उसके नाम से चलती है

वो आयेंगे मेरी आगोश में कौन सी शब् को
यही बात तो अब हर इक शाम से चलती है

फलक पे माह भी अब्र के साए में मिलता है
चौदहवीं की रात, जब वो बाम से चलती है

निगाहें साकी को वाइजों, इल्जाम ना देना
मयकशों की जिन्दगी तो जाम से चलती है

वो पूछ लेता है जब, बीमारों का हाल यूँ ही
सच है के ये नब्ज फिर आराम से चलती है

मोहब्बत के सिवा और अब फ़साने नहीं हैं
अपनी हर ग़ज़ल इसी कलाम से चलती है

अपने हमखारों की तुम खैर खबर लेते रहो
उम्र सारी ये 'राज' दुआ सलाम से चलती है