ख्यालों में आपका आना जाना रात भर
फिर चश्मे--तर का मुस्कुराना रात भर
हर इक आहट पे है आपकी आमद लगे
मेरा दरवाजे तक नज़रें उठाना रात भर
आपके पैरहन को छूके जब चली ये सबा
हरसू खुला जैसे कोई मयखाना रात भर
हवा, शजर, पत्ते, घटाएं, बेकरार थे सब
इक मैं ही न था यहाँ पे दीवाना रात भर
के बज़्म-ए-तन्हाई में चली याद आपकी
बना लफ्ज़-लफ्ज़ पर अफसाना रात भर
हद-ए-इंतज़ार में ये चराग भी बेसुध था
जारी रहा उसका भी लडखडाना रात भर
अभी तो गज़र का यहाँ पहला ही पहर है
हुआ खुद को यूँ ''राज़''बहलाना रात भर
हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
जवाब देंहटाएंwaah kya kaha hai, bina hriday ko sparsh kiye to ja hi nahi sakta
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
bahut achhi prastuti
जवाब देंहटाएंsundar bahut sundar
संजय भाई......आभार
जवाब देंहटाएंप्रीत....शुक्रिया
दीप भाई.....आभार
wahhh...Behtreen....
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/
simply superb
जवाब देंहटाएंbhut sundar
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