शाम फिर से मुस्कराने लगी
उसकी याद जब यूँ आने लगी
चराग खुद-ब-खुद ही जल उठे
रौशनी उसे ही गुनगुनाने लगी
संदली हवा छूके उसके गेसू चली
सारा आलम घटा महकाने लगी
रुख से जो उसके आँचल ढलका
शब् जुगनुओं सी शरमाने लगी
हंस पड़े थे चमन के फूल सारे
होठों पे हंसी जो लहराने लगी
रक्स करता हुआ जर्रा-२ मिला
वो पाजेब जो छमछमाने लगी
bahut hi sunder bhaw shabd sanyogan behtar.aabhar
जवाब देंहटाएंbahut khoob..
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
dil ko chhuti rachnaon se mili ... kya maangu khuda se zindagi ke liye ... kripya yah rachna rasprabha@gmail.com per parichay aur tasweer ke saath bhejen vatvriksh ke liye
जवाब देंहटाएंkhoobsoorat abhivyakti!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है ,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
सुंदर अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
kk ji
जवाब देंहटाएंbehtareen pics ke sath ek behatareen gazal....
वाह! क्या बात है!
जवाब देंहटाएंEhsas ji...
जवाब देंहटाएंNutan ji...
Vandana ji...
Rashmi ji...
Anupama ji...
Sharda ji...
Sangeeta ji...
Dorothy ji...
Upender ji...
Sameer ji...
आप सभी का दिल से शुक्र गुजार हूँ...
आपने अपने कीमती वक़्त में से कुछ इस नाचीज को भी दिया...
खुश रहें......
खूबसूरत .. बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसुंदर स्र्जन
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