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रविवार, अप्रैल 26, 2009

ख्वाबो में फिर से आने जाने लगी है वो




ख्वाबो में फिर से आने जाने लगी है वो 
देख के मुझको यूँ ही मुस्कराने लगी है वो 

कौन कहता है की तवज्जो नहीं दिया करती 
नजरे चार हों तो सर झुकाने लगी है वो 

सखियाँ मेरे नाम से जब छेड़ती है उसको 
दांतों से दबा उँगलियाँ शरमाने लगी है वो 

चुपके-2 रातो को याद करके भरती है आहें 
अफसानो में नाम मेरा ही गुनगुनाने लगी है वो 

दोनों जहाँ में उस जैसी कोई वफ़ा नहीं होगी 
"राज" की कम निगाही को भी अदा बताने लगी है वो

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