चलकर हज़ार चालें ये सियासत चलती है
गरीबों का खून चूस कर हुकूमत चलती है
साथ ना कोई दौलत, ना शोहरत चलती है
चलती है साथ तो बस मोहब्बत चलती है
सुबह लड़ते हैं, शाम को साथ ही खेलते हैं
बच्चों में जरा देर को ही अदावत चलती है
वो तो किसी की आँख की हैवानियत ही है
हया तो जबके ओढ़े हुए शराफत चलती है
फ़रिश्ते मौत के कभी भी रिश्वत नहीं लेते
रोजे-अज़ल न किसी की ज़मानत चलती है
कुछ और नहीं करते, सच बयान करते हैं
मेरे लफ़्ज़ों से ही मेरी ये बगावत चलती है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-08-2014) को "चालें ये सियासत चलती है" (चर्चा मंच 1714) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ख़ूबसूरत अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव
जवाब देंहटाएंवाह!!!वाह!!! क्या कहने
शुक्रिया आप सभी का
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