लोकप्रिय पोस्ट

बुधवार, फ़रवरी 01, 2012

उसकी याद का जब कभी सैलाब चले है




उसकी याद का जब कभी सैलाब चले है 
मेरी आँखों से बे-सबब फिर आब चले है 

ये दोस्त जान लेते हैं हर बात जेहन की
इन पे कब कहाँ हंसी का हिजाब चले है 

दिल अपना हार के हम सिकंदर हो गये
इश्क के खेल में उल्टा ही हिसाब चले है  

हौसलों के दम से ही वो यहाँ रौशन हुए 
जुगनुओ के साथ कब आफताब चले है 

लौटके वो आ रहा ये खबर जबसे मिली 
तबसे धड़कन दिल की ये बेताब चले है 

लफ़्ज़ों में हुई हो दिल की हाल-ए-बयानी  
तो ग़ज़ल में कहाँ बहर का आदाब चले है  

5 टिप्‍पणियां:

Plz give your response....