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गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

अब तो हर घड़ी बस उसके ख़याल आते हैं




अब तो हर घड़ी बस उसके ख़याल आते हैं 
दर्द उसे हो तो आँखों में मेरी शलाल आते हैं 

वो याद कर-2 के मेरी हिचकियाँ बढाता है 
करने कुछ उसको, ऐसे भी कमाल आते हैं 

जबसे अक्स उसका इस दिल में उतर गया 
कहाँ पसंद अब हमे हूरों के जमाल आते हैं 

शब् भर ख्वाबों में वो दीदार क्या देने लगा 
इब्तिदा-ऐ-सहर दो घड़ी और टाल आते हैं 

और करके वादा ना आना होगी अदा उसकी 
हम तो इंतजार में कई शामें निकाल आते हैं 

बज्म-ऐ-हुस्न में यूँ तो चेहरे बहुत मिलते हैं 
इन आँखों को नजर वो ही फिलहाल आते हैं 

उसके आने की खबर से पलकें नहीं झपकती 
जाने कैसे कैसे 'राज' खुद को संभाल आते हैं

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